बेटी

हम सोचते हैं, शहर में रहने वाले लोग, बहुत मॉडर्न है, बहुत खुली सोच वाले, बड़ी सोच वाले लोग होते हैं । लेकिन ये सिर्फ वहम है। इस शहर में रहने वाले लोगों ने शायद बेटी को पैदा होने से पहले मरना बंद कर दिया होगा लेकिन, उसके पैदा होने के बाद से, बड़े होने तक और मरने तक, उसे परेशान करना नहीं छोड़ा है। जिसके अपने घर में बेटी है, वो किसी किसी और की बेटी को दुखी करते है। जिसके अपने घर में बेटी है, वो किसी और की बेटी का शोषण करते हैं। इसी शहर में, इसी समाज में। 
अगर उसकी बेटी अपने पति का घर छोड़ आई, तो न जाने कितने बहाने देते हैं, और किसी और की बेटी अगर आई, तो न जाने कितने सवाल खड़े करते हैं । इसी शहर में , इसी समाज में। 
बेटी , शादी न करे तो घरवालों के ताने , शादी कर ले तो ससुराल वालों के ताने । अकेली रहे तो हर तरफ से लोग अलग अलग अलग तरीके से परेशान करते हैं।  हर बार चरम अपराध करना, बस यही खबर और अखबारों में आता है , लेकिन ये जो छोटे छोटे अपराध है ? मानसिक प्रतर्णा हैं ? इन्हे कोई नही लिखता । इन्हे तो बस एक बेटी को सहना पड़ता है । 
जब भी कोई चरम अपराध की खबर आती है , हम पूछते हैं जेड क्या ये वही समाज है, जहां देवी की पूजा होती है ?!! 

ये सवाल सिर्फ किसी चरम अपराध के बाद ही क्यों पूछते हैं ? ये सवाल हम तब क्यों नहीनपूचते जब एक बेटी को चैन से जीने नही दिया जाता । तब क्यों नही पूछते जब बचपन से ही उसे दब के रहने को सिखाया जाता है। क्यों तब उसे दुर्गा से चंडी रूप में बदन नही सिखाया जाता ?! 
पूजा तो दुर्गा को भी जाता है और चंडी को भी ?! पार्वती भी अपनी काली भी अपनी । ये भी तो बेटी ही है । 


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